राम मंदिर अयोध्या का इतिहास

राम मंदिर (भगवान राम का मंदिर) का इतिहास उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के एक शहर, अयोध्या के ऐतिहासिक और धार्मिक परिदृश्य से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह स्थान हिंदू धर्म में पूजनीय देवता भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है। राम मंदिर के निर्माण को लेकर विवाद मुख्य रूप से बाबरी मस्जिद के इर्द-गिर्द घूमता है, जो एक मस्जिद थी जो उसी स्थान पर थी।

यहां राम मंदिर के निर्माण से पहले की ऐतिहासिक घटनाओं का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
 

प्राचीन इतिहास:

अयोध्या सदियों से हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र रहा है और पारंपरिक रूप से इसे भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था, जिससे यह लाखों हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थान बन गया।
धार्मिक महत्व:
अयोध्या उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित एक प्राचीन शहर है। यह हिंदू धर्म में अत्यधिक धार्मिक महत्व रखताहै और इसे धर्म के सात पवित्र शहरों में से एक माना जाता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि अयोध्या की स्थापना हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में मानवता के पूर्वज मनु ने की थी|

यह शहर प्रसिद्ध रूप से ऋषि वाल्मिकी के महान महाकाव्य रामायण से जुड़ा हुआ है। अयोध्या को कोसल के प्राचीन साम्राज्य की राजधानी के रूप में वर्णित किया गया है, जिस पर महान राजा दशरथ का शासन था।


भगवान राम का जन्मस्थान:

हिंदू धर्म में केंद्रीय कथाओं में से एक रामायण है, जो भगवान विष्णु के अवतार भगवान राम और राक्षस राजा रावण से अपनी पत्नी सीता को बचाने की उनकी खोज की कहानी बताती है।
अयोध्या को भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है, जो इसे हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाता है।
रामायण में अयोध्या को राम के पिता राजा दशरथ के शासन के तहत एक समृद्ध और न्यायपूर्ण राज्य के रूप में वर्णित किया गया है।

सांस्कृतिक विरासत:

अयोध्या सहस्राब्दियों से सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। यह दार्शनिक प्रवचन, धार्मिक अनुष्ठानों और कलात्मक अभिव्यक्तियों का केंद्र रहा है।
यह शहर त्रेता युग से जुड़ा है, जो हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान के चार युगों में से एक है, जिसके दौरान रामायण की घटनाएं घटी बताई जाती हैं।


ऐतिहासिक विकास:

सदियों से, अयोध्या भगवान राम के भक्तों के लिए तीर्थयात्रा के केंद्र बिंदु के रूप में विकसित हुई है। शहर की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत में योगदान करते हुए, मंदिरों और आश्रमों का निर्माण किया गया।
अयोध्या का महत्व धार्मिक सीमाओं से परे तक फैला हुआ है, जो विद्वानों, कवियों और ज्ञान के चाहने वालों को आकर्षित करता है।


पुरातात्विक खोजें:

अयोध्या में और उसके आस-पास पुरातात्विक खुदाई में ऐसी कलाकृतियाँ मिली हैं जो इसके प्राचीन इतिहास की जानकारी प्रदान करती हैं। इन खोजों में विभिन्न कालखंडों की प्राचीन संरचनाओं और कलाकृतियों के अवशेष शामिल हैं।
संक्षेप में, अयोध्या का प्राचीन इतिहास हिंदू पौराणिक कथाओं, विशेषकर रामायण की कथा में गहराई से निहित है। यह तीर्थयात्रा और सांस्कृतिक गतिविधियों का एक प्रतिष्ठित केंद्र रहा है, जो धर्म के आदर्शों और भगवान राम की महाकाव्य कहानियों का प्रतीक है। भगवान राम के जन्मस्थान के साथ अयोध्या के जुड़ाव ने हिंदू धर्म में इसकी पवित्र स्थिति में योगदान दिया है, जिससे यह लाखों विश्वासियों के लिए आध्यात्मिक महत्व का गंतव्य बन गया है।

मुगल काल:

16वीं सदी में मुगल बादशाह बाबर के शासनकाल के दौरान 1528 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया गया था।

मस्जिद उस स्थान पर बनाई गई थी जहां कुछ हिंदुओं का मानना है कि राम जन्मभूमि (भगवान राम का जन्मस्थान) मौजूद थी।
बाबरी मस्जिद निर्माण (1528): बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 में पहले मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल के दौरान अयोध्या में किया गया था। ऐतिहासिक खातों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण बाबर के जनरलों में से एक मीर बाकी ने किया था।
धार्मिक महत्व: मस्जिद का निर्माण उस स्थान पर किया गया था जिसे कुछ हिंदू भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। अयोध्या, विशेष रूप से, भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में प्रतिष्ठित है, जो हिंदू महाकाव्य रामायण में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। विवादित स्थल भगवान राम से जुड़ा होने के कारण धार्मिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र रहा है।
स्थापत्य शैली: बाबरी मस्जिद का निर्माण मुगल स्थापत्य शैली में किया गया था, जिसकी विशेषता गुंबद और मेहराब थे। इसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का उपयोग शामिल था, जो मुगल वास्तुकला में एक सामान्य विशेषता है।
हिंदू-मुस्लिम संबंध: जबकि मस्जिद के निर्माण ने क्षेत्र में मुगल शासन को प्रतिबिंबित किया, इससे हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव भी पैदा हुआ। हिंदुओं के लिए इस स्थल के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व ने सदियों से असंतोष और विवाद की भावना को बढ़ावा दिया है।
बाबर की विरासत: बाबर द्वारा मस्जिद की स्थापना भारत के विभिन्न हिस्सों में मुगल शासकों द्वारा इस्लामी संरचनाओं के निर्माण के व्यापक पैटर्न का हिस्सा थी। इस युग में कई मस्जिदों, किलों और अन्य संरचनाओं का निर्माण हुआ, जिनमें से प्रत्येक ने भारत के स्थापत्य और सांस्कृतिक इतिहास की समृद्ध टेपेस्ट्री में योगदान दिया।
समकालिक विरासत: ऐतिहासिक तनावों के बावजूद, भारत की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत विभिन्न प्रभावों के संश्लेषण का एक उत्पाद है, जिसमें शामिल हैंडिंग हिंदू, मुगल और बाद में ब्रिटिश औपनिवेशिक तत्व। बाबरी मस्जिद, एक वास्तुशिल्प संरचना के रूप में, इस समन्वित विरासत का प्रतीक है।
बाबरी मस्जिद के निर्माण ने ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कारकों की एक जटिल परस्पर क्रिया के लिए मंच तैयार किया, जो अंततः अयोध्या विवाद और 1992 में मस्जिद के विध्वंस का कारण बना, जिसने सदियों से इस क्षेत्र के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया। आना।

स्वतंत्रता के बाद की अवधि:

अयोध्या विवाद ने औपनिवेशिक युग के दौरान प्रमुखता हासिल की और स्वतंत्रता के बाद के भारत में भी जारी रहा।
इस स्थल को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच वर्षों से तनाव बना हुआ है।
सामाजिक काल के दौरान, ब्रिटिश प्रशासन ने अयोध्या पर कब्ज़ा कर लिया और अयोध्या सहित धार्मिक स्थलों पर विवाद कानूनी विवाद का विषय बन गए। 19वीं शताब्दी में, अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संघर्ष को रोकने के लिए इस बिंदु के आंतरिक और बाहरी यार्ड को अलग करने के लिए एक बाड़ लगाई थी। राम चबूतरा और सीता रसोई परिसर के अंदर, हिंदुओं को राम चबूतरा और सीता रसोई संरचनाओं में पूजा करने की अनुमति थी, जबकि मुसलमानों को बाबरी मस्जिद के अंदर प्रार्थना करने की अनुमति थी। सहमति, हालांकि कई बार तनावपूर्ण रही, कई बार जारी रही। 1949 मूर्ति स्थापना 1949 में, एक महत्वपूर्ण घटना घटी जब कथित तौर पर बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम की प्रतिमाएं रखी गईं। इस घटना से जुड़ी परिस्थितियाँ विवादित हैं, कुछ का दावा है कि यह गुप्त रूप से किया गया था, जबकि अन्य का तर्क है कि यह हिंदू नशेड़ियों द्वारा किया गया एक रोबोटिक कार्य था।
इस घटना के कारण प्वाइंट पर ताला लग गया और प्रशासन ने इसे विवादित क्षेत्र घोषित कर दिया. कानूनी विवाद प्वाइंट पर ताला लगाने और आराधनालय के अंदर हिंदू प्रतीकों की मौजूदगी के कारण कानूनी लड़ाई हुई। हिंदू और मुस्लिम दोनों रंगीन पार्टियों ने इस मुद्दे पर अपना दावा पेश करने की इच्छा व्यक्त की। कानूनी विवाद दशकों तक जारी रहे और अयोध्या मुद्दा भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक दबाव का प्रतीक बन गया। 1986 ताले खोलना 1986 में, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने विवादित ढांचे के दरवाजे खोलने की अनुमति दी, जिससे हिंदुओं को उस स्थान पर पूजा करने की अनुमति मिल गई। इस कदम से समुदायों के बीच दबाव बढ़ गया और अयोध्या विवाद और भड़क गया। बाबरी मस्जिद का विध्वंस (1992) इस अवधि के दौरान सबसे महत्वपूर्ण घटना 6 दिसंबर 1992 को हिंदू कार्यकर्ताओं की एक बड़ी भीड़ द्वारा बाबरी मस्जिद का विध्वंस था।
 
आराधनालय के विनाश के कारण व्यापक सहयोगात्मक चीख-पुकार मच गई, जिससे पूरे देश में जान-माल का काफी नुकसान हुआ। उपनिवेशवादी और स्वतंत्रता के बाद की अवधि में अयोध्या विवाद में कानूनी लड़ाइयों, कार्यकारी राय और अंततः बाबरी मस्जिद के विनाश की घटनाओं की एक श्रृंखला देखी गई। इन घटनाओं ने अयोध्या विवाद की रेखा को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया, जिसका असर आने वाले समय में भारत के धार्मिक और राजनीतिक भूगोल पर पड़ा। बाबरी मस्जिद विध्वंस (1992) 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस, अयोध्या विवाद में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं सहित हिंदू कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि आराधनालय भगवान राम की मातृभूमि को चिह्नित करने वाले हिंदू मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था। इस विनाश के कारण पूरे भारत में व्यापक सहयोगात्मक चीखें उठीं। पृष्ठभूमि 1528 में मुगल सम्राट बाबर द्वारा निर्मित बाबरी मस्जिद, उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित थी। हिंदुओं ने दावा किया कि आराधनालय का निर्माण उस स्थान पर किया गया था, जिसे हिंदू धर्म में पूज्य भगवान राम की मातृभूमि माना जाता है। अयोध्या विवाद दशकों से चला आ रहा था, हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय इस मुद्दे पर अपने अधिकारों का दावा कर रहे थे। बढ़ते दबाव 1980 के दशक में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सहित रंगीन हिंदू संगठनों के साथ असहमति को बढ़ावा मिला, जिन्होंने इस बिंदु पर राम मंदिर के निर्माण की मांग की। राम जन्मभूमि आंदोलन ने राजनीतिक गति पकड़ी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस मुद्दे का कड़ी मेहनत से समर्थन किया।
विनाश की घटना 6 दिसंबर 1992 को, हिंदू कार्यकर्ताओं और कार सेवकों की एक बड़ी भीड़ एक योजनाबद्ध प्रदर्शन के हिस्से के रूप में बाबरी मस्जिद के पास एकत्र हुई। स्थिति बिगड़ गई और भीड़ अंततः हिंसक हो गई, जिससे आराधनालय के आसपास की सुरक्षा का उल्लंघन हुआ। बाबरी मस्जिद को भीड़ ने हथौड़ों और कुदाल सहित रंगीन उपकरणों का उपयोग करके ध्वस्त कर दिया था। परिणाम इस विनाश के कारण हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच नागरिक सहयोगात्मक चीखें और हिंसा हुई। चीख-पुकार के दौरान हजारों लोगों की जान चली गई और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ। इस घटना से पूरे देश में सदमा, क्रोध और शोक की भावना फैल गई। राजनीतिक परिणाम बाबरी मस्जिद विध्वंस के महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव थे। राम मंदिर निर्माण की वकालत करने वाली भाजपा को समीक्षा और समर्थन दोनों का सामना करना पड़ा। इस घटना ने धार्मिक दबाव बढ़ा दिया और सामाजिक स्तर पर इसका निरंतर प्रभाव पड़ा- भारत का राजनीतिक ताना-बाना। विध्वंस के बाद की कानूनी कार्यवाही, रंगीन व्यक्तित्वों और घटना में शामिल नेताओं के खिलाफ कानूनी मामले दर्ज किए गए। कानूनी कार्यवाही में विनाश के लिए जिम्मेदार लोगों को उनके आचरण के लिए जिम्मेदार ठहराने की मांग की गई। बाबरी मस्जिद विध्वंस भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, जिसने अयोध्या विवाद की दिशा को आकार दिया और देश में सहयोगात्मक संबंधों की गतिशीलता को प्रभावित किया। इस आयोजन ने असहमति के कानूनी समाधान की आवश्यकता पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया और बाद के समय में सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप का मार्ग प्रशस्त किया। कानूनी लड़ाइयाँ विवादित बिंदु की शक्ति को लेकर कई कानूनी लड़ाइयों में विनाश फिर से शुरू हो गया। हिंदू और मुस्लिम समूहों सहित रंगीन पार्टियों ने मामले पर नियंत्रण की मांग करते हुए अदालत में इच्छाएं दायर कीं।
 
टाइटल सूट (1989) अयोध्या मुद्दे पर कानूनी असहमति बाबरी मस्जिद विध्वंस से पहले की है। 1989 में, एक हिंदू पार्टी, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) द्वारा एक शीर्षक मुकदमा दायर किया गया था, जिसमें विवादित बिंदु पर एक मंदिर के निर्माण के लिए प्राधिकरण की मांग की गई थी। मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जमीन पर अपना अधिकार जताते हुए दावे पर सवाल उठाया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला (2010) कई कानूनी कार्यवाही के बाद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर, 2010 को अपना फैसला सुनाया। अदालत ने विवादित भूमि को मामले में शामिल तीन मुख्य पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच तीन बराबर गलियारों में विभाजित कर दिया। निर्मोही अखाड़ा (एक हिंदू धार्मिक संस्था), और देवता, राम लला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी। इस फैसले को एक रियायत के रूप में देखा गया, लेकिन इससे असहमति पूरी तरह से हल नहीं हुई और तीनों पक्षों ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ प्रार्थना की और विवादित भूमि के विभाजन की वैधता और निष्पक्षता की जांच शुरू की। शीर्ष अदालत ने प्रार्थनाओं को एक एकल मामले में समेकित किया जिसे “अयोध्या टाइटल सूट” या “अयोध्या भूमि असहमति मामला” के रूप में जाना जाता है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला (2019) कई बार की आवाजों के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को अपना बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने सर्वसम्मति से विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि हिंदुओं ने अपना अवैध कब्जा स्थापित कर लिया है। और बिंदु पर देवीकरण. अदालत ने बाबरी मस्जिद की शाब्दिक वास्तविकता को भी स्वीकार किया लेकिन 1992 में इसके विध्वंस को अवैध घोषित कर दिया। मस्जिद के लिए वैकल्पिक भूमि उसी फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय की भावनाओं का सम्मान किया और सरकार को एक आराधनालय के निर्माण के लिए अयोध्या में पांच एकड़ जमीन का एक वैकल्पिक टुकड़ा आवंटित करने का निर्देश दिया। सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी गई ज़मीन विवादित स्थल से अलग थी और इसका उद्देश्य बाबरी मस्जिद के नुकसान की भरपाई करना था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उद्देश्य लंबे समय से चले आ रहे अयोध्या विवाद का कानूनी समाधान निकालना है। जबकि कुछ लोगों द्वारा संतुलित और न्यायसंगत समाधान के प्रयास के लिए इस निर्णय को सलाम किया गया, इसने निर्णय की कथित निष्पक्षता और भारत में संप्रदाय और सहयोगात्मक सद्भाव के लिए इसके प्रत्यारोपों पर बहस भी छेड़ दी।

अयोध्या फैसला (2019) नवंबर 2019

अयोध्या फैसला (2019) नवंबर 2019 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद पर एक बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने विवादित भूमि राम मंदिर के निर्माण के लिए हिंदुओं को दे दी और सुन्नी वक्फ बोर्ड को आराधनालय के निर्माण के लिए जमीन का एक वैकल्पिक टुकड़ा आवंटित किया।
अयोध्या फैसला (2019) नवंबर 2019 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मुद्दे पर लंबे समय से चले आ रहे विवाद को संबोधित करते हुए, अयोध्या विवाद पर एक बड़ा फैसला सुनाया। फैसले का उद्देश्य विवादित भूमि की शक्ति पर कानूनी और न्यायिक निर्णय प्रस्तुत करके दशकों पुरानी असहमति का समाधान लाना था। फिर अयोध्या फैसले के संबंध में महत्वपूर्ण विवरण कानूनी कार्यवाही मामले पर कई बार कार्रवाई चल रही थी, जिसमें रंगीन पक्ष विवादित बिंदु पर अपना दावा कर रहे थे। कानूनी लड़ाई में हिंदू और मुस्लिम समूहों के साथ-साथ सुन्नी वक्फ बोर्ड भी शामिल था, जो मुस्लिम समुदाय के हितों का प्रतिनिधित्व करता था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने सुनाया। अदालत ने इस बिंदु के शाब्दिक और धार्मिक महत्व को स्वीकार किया, हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए इसका महत्व बताया। भूमि विभाजन अदालत ने फैसला सुनाया कि अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन गलियारों में विभाजित किया जाएगा। भूमि का केंद्रीय और अत्यंत विवादास्पद हिस्सा, लगभग 2.77 एकड़, राम मंदिर के निर्माण के लिए आवंटित किया गया था। मस्जिद के लिए वैकल्पिक भूमि मुस्लिम समुदाय के उद्यमों को संबोधित करने के लिए, अदालत ने सरकार को सुन्नी समुदाय के लिए एक अलग, पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश दिया।
आराधनालय के निर्माण के लिए एक्यूएफ बोर्ड। यह वैकल्पिक भूमि अयोध्या के ही क्वार्टर में सौंपी गई थी, लेकिन ध्वस्त बाबरी मस्जिद के समान बिंदु पर नहीं। फैसले के पीछे तर्क अदालत का फैसला शाब्दिक पुष्टि, पुरातात्विक निष्कर्षों और संबंधित समुदायों की मान्यताओं और आस्था की कानूनी जांच पर आधारित था। फैसले में विभिन्न धार्मिक समुदायों के हितों को संतुलित करने और सहयोगात्मक सद्भाव बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। प्रतिक्रिया और अपराध अयोध्या फैसले को आम तौर पर समाज के रंगीन वर्गों ने स्वीकार किया, और हिंदू और मुस्लिम दोनों नेताओं ने शांति और सद्भाव की अपील की। उत्तर प्रदेश सरकार ने राम मंदिर निर्माण के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र नामक ट्रस्ट का गठन किया। ट्रस्ट को तम्बू निर्माण और संबद्ध कंडीशनिंग की देखरेख करने का काम सौंपा गया था। अयोध्या फैसले को एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दे को हल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया, जिसने दशकों से भारत में धार्मिक दबाव को बढ़ावा दिया था। इसका उद्देश्य राम मंदिर के निर्माण के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करना था, साथ ही एक आराधनालय के निर्माण के लिए भूमि का एक अपरिहार्य टुकड़ा देकर मुस्लिम समुदाय के उद्यमों को संबोधित करना था। निर्णय में विभिन्न समुदायों की धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन बनाने और राम मंदिर निर्माण (2020) के सिद्धांतों को बनाए रखने की कोशिश की गई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया। तम्बू की परिकल्पना भगवान राम को समर्पित एक भव्य संरचना के रूप में की गई है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर के निर्माण की देखरेख के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया गया था। ट्रस्ट ने नागरिक धर्मयुद्ध के माध्यम से तम्बू के निर्माण के लिए वित्त इकट्ठा करने की प्रक्रिया शुरू की, जिससे लाखों नशेड़ियों से लाभ प्राप्त हुआ। राम मंदिर के लिए भूमिपूजन 5 अगस्त, 2020 को एक भव्य रूप में हुआ, जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सहित रंगीन गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए। अनुमान है कि तम्बू का निर्माण तम्बू कवच की नागर शैली का अनुसरण करेगा और इसे भारत की कलात्मक और धार्मिक विरासत का प्रतीक माना जाएगा। इस योजना में भगवान राम को समर्पित एक विशाल मुख्य तम्बू के साथ-साथ अन्य संरचनाएं, एक यार्ड और तीर्थयात्रियों के लिए रंगीन प्रतिष्ठान शामिल हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों के पेशेवर व्यापारी और शिल्पकार मंदिर की वास्तुकला की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए पारंपरिक तरीकों का उपयोग करते हुए, निर्माण में शामिल हैं। राम मंदिर का निर्माण एक महत्वपूर्ण कलात्मक और धार्मिक डिजाइन है, जो देश भर के लोगों और वैश्विक हिंदू समुदाय का ध्यान और भागीदारी आकर्षित करता है। राम मंदिर का पूरा होना एक महत्वपूर्ण अवसर माना जा रहा है, जो लंबे समय से चली आ रही असहमति के अंत और अयोध्या के इतिहास में एक नए अध्याय की सुबह का प्रतीक है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि राम मंदिर निर्माण से संबंधित घटनाक्रम जनवरी 2022 में मेरी ज्ञान गिरफ्तारी की तारीख के बाद हो सकता है।

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